शादी में नाच- गाना डीजे बजाना इस्लाम में हराम- है, या नहीं : इस विषय पर मौलाना मजीदूउररहमान ने क्या कहा देखे खबर title
Abid Hussain
Sat, Oct 25, 2025

टनकपुर/ निकाह इस्लाम में इबादत और पाक रिश्ता माना गया है शरीयत के हिसाब से भी शादी ब्याह में नाच गाना तथा फिजूल खर्ची करना हराम बताया है ऐसे में एक सवाल खड़ा होता है क्या ऐसे माहौल में पढ़ा गया निकाह जायज होगा या नहीं? इस संबंध में आप पूरी खबर पढिएगा। आपको आगे बताते हैं। जानिए इस्लामी कानून और उलेमा इस मुद्दे पर क्या कहते हैं। आपको बता दें शादी इस्लाम में एक पाक रिश्ता है। जिसे इस्लाम में बहुत ही सादगी के साथ और शरीयत के उसूलों पर अमल करते हुए निभाने की हिदायत दी गई है लेकिन अफसोस की बात यह है कि आजकल मुस्लिम समाज में शादियों का तौर तरीका बदला सा गया है डीजे बैंड बाजा और नाच गाने जैसी रस्मे आम हो गई है। जबकि इस्लाम में इन्हें नाजायज और हराम करार दिया गया है इस्लाम खुशियों का दुश्मन नहीं है बल्कि हमें हद से ज्यादा दिखावा और फिजूल खर्ची से बचने की ताकीद करता है। इस संबंध में ग्राम पंचायत मनिहार गोठ जामा मस्जिद के मौलाना मजीदूररहमान के मुताबिक शादी एक मजबूत और मुकम्मल अमल है लेकिन इसके साथ जोड़ी यह खुराफात इंसानी समाज और इस्लाम की तालीमात दोनों के खिलाफ है। उन्होंने कहा की शादी इस्लाम में एक पाक अमल है। जिसे बहुत सादगी और दरमियांनी रास्ते के साथ अदा करने का हुक्म दिया गया है। लेकिन आजकल मुस्लिम समाज में शादियों में डीजे बैंड बाजा नाच गाना और तमाशा किए जाते हैं। जो इस्लाम में बिल्कुल नाजायज और हराम करार दिए गए हैं। बताया कि इस्लाम हमें ना तो जरूरत से ज्यादा खुश होने की इजाजत देता है और ना ही बेवजह गमगीन होने की बल्कि हमेशा एक दरमियांनी रास्ता अपनाने की हिदायत दी गई है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में बैंड बाजा और नाच गाने जैसी रस्मे अपनाना सिर्फ गुनाह है। उन्होंने क्षेत्र की आवाम से इन नाजायज कामों से बचने की गुजारिश की है। मौलाना ने कहा कि इस्लाम मे किसी को तकलीफ देने की इजाजत नहीं है अगर लोग अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके को छोड़कर नाफरमानी करते हैं और गुनाह की तरफ जाते हैं तो इसकी सजा उन्हें आखिरत में मिलेगी मौलाना साहब ने खुले और साफ लफ्जों में कहा की शादी एक मजबूत सामाजिक और मजहबी रिश्ता है। जो शौहर और बीवी के बीच गवाहों और वली के सामने एक कांटेक्ट के तौर पर पूरा किया जाता है। इसलिए नाच गाना और बैंड बाजा बजाने से शादी के वजूद पर कोई फर्क नहीं पड़ता शादी तो जायज होगी लेकिन इन खुराफात और फिजूल रस्मो की इस्लाम में कोई इजाजत नहीं है। और यह हराम है इससे गुनाह मिलता है
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